Tenaliram Ki Kahaniyan
तेनालीराम और 'स्वर्ण मूषक पुरस्कार'

Tenaliram Ki Kahaniyan: तेनालीराम और ‘स्वर्ण मूषक पुरस्कार’

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Tenaliram Ki Kahaniyan: भले ही माहाराज कृष्णदेव राय दरबार के सभी सभासदों को खासा महत्व देते थे, लेकिन इसके बावजूद मंत्रियों को लगता कि राजा सिर्फ तेनालीराम को भी तवज्जो देते हैं। सभासदों का मानना था कि राजा कृष्णदेव राय जानबूझकर तेनालीराम को ऐसे मौके देते हैं, जिसकी वजह से वह सभासदों पर भारी पड़ता है। यही वजह थी कि मंत्री अक्सर तेनालीराम का मजाक उड़ाने के मौके को तलाशते रहते थे।

Tenaliram Ki Kahaniyan

एक दिन कृष्णदेव राय का दरबार लगा हुआ था। आम दिनों की तरह राज्यसभा की कार्रवाई जारी थी, लेकिन इसी बीच महाराज को एक अजीब सी गन्ध महसूस हुई, जिसने उन्हें विचलित कर दिया। कृष्णदेव राय ने सभासदों से पूछा कि क्या उन्हें भी कोई दुर्गन्ध महसूस हो रही है?

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तेनालीराम और ‘स्वर्ण मूषक पुरस्कार’

सभासदों ने ध्यान से इसकी पड़ताल नहीं की और सभी ने कहा- नहीं महाराज ! हमें इस तरह की कोई दुर्गन्ध महसूस नहीं हो रही है।

…लेकिन तेनालीराम तो सबसे अलग ही थे। उन्होंने आस-पास की हवा को महसूस करने की कोशिश की और कहा- “हां महाराज! मुझे ऐसी गंध आ रही है, मानो कोई चूहे का शरीर सड़ रहा हो। मुझे लगता है कि यहां आस-पास कोई चूहा मरा पड़ा है।”

महाराज के आदेश पर सेवकों ने बिना देरी करे चूहे को खोज निकाला और उसे महाराज के पास लेकर आ गए।

महाराज कृष्णदेव राय सेवक की इस बेवकूफी से नाराज हो गए। उन्होंने कहा “ठीक है! तुमने इसे खोज निकाला मगर इसे यहां पर लाने की जरूरत क्या थी? कहीं फेंक आते और मुझे आकर सूचना दे देते! अब मैं इस चूहे का क्या करूँगा?”

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तेनालीराम की कहानी

महाराज की बात सुनकर सेवक डर से थरथराने लगा। तभी एक मसखरा दरबारी ने कहा, “महाराज, आप चाहें तो चूहा इस दरबार के सबसे विद्वान सभासद तेनालीराम को भेंट कर सकते हैं। आपने तो तेनालीराम को तरह-तरह के उपहार दिए हैं, आज मरा चूहा ही सही! आपके हाथों मिला उपहार पाकर वो जरूर खुश होंगे।”

मसखरे दरबारी की बात पर सभी सभासद हंसने लगे। वह दरबारी अक्सर इसी तरह के मजाक करता रहता था। इसलिए महाराज कृष्णदेव राय ने उसकी बातें अनसुनी कर दीं।

वहीं, कोने में बैठे तेनालीराम इस मसखरे सभासद की बातों में छिपे कटाक्ष को समझ गया था। वह इससे तिलमिला गया और तुरंत जवाब देते हुए कहा, “माननीय सभासद ! अगर महाराज ने मुझे यह चूहा उपहार में दिया तो मैं इसे आदर के साथ ग्रहण करूंगा। ऐसे ही चूहा भगवान गणपति का वाहन नहीं बन गया है।”

महाराज तेनालीराम का जवाब सुनकर मुस्कुराने। उन्होंने तेनालीराम से पूछा- “तुम मरे चूहे का क्या करोगे?”

तेनालीराम ने जवाब दिया “अगर आपने मुझे यह चूहा भेंट किया तब मैं यह समझूंगा कि आप मेरी परीक्षा लेना चाहते हैं और ये परीक्षा देने के लिए मैं इस चूहे से व्यापार करूंगा महाराज !”

महाराज ने हैरानी से पूछा- “मरे चूहे से व्यापार? तेनालीराम ये तुम कैसे कर सकते हो?”

इसके जवाब में तेनालीराम ने बगैर देरी किए कहा, “महाराज! दुनिया की हर वस्तु का कोई ना कोई उपयोग है। कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं है। मैं इस मरे चूहे को किसी सपेरे को बेच आऊंगा और उससे गुड़ खरीद लूंगा।”

तेनालीराम ने आगे कहा- “इन दिनों गर्मी का मौसम है। मैं उस गुड़ को पानी में मिलाकर मीठा पानी बेचूंगा। मीठा पानी बेचने से जो पैसे मिलेंगे उससे चना खरीदूंगा और चना बेचकर, चना से बने पकवान, सत्तू, गुड़चना आदि बेचकर अच्छा पैसा कमाऊंगा और उन पैसों से कोई बड़ा रोजगार शुरू करूंगा।”

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महाराज तेनालीराम की बातें सुनकर काफी खुश हो गए। उन्होंने सभासदों से कहा, “तेनालीराम की यही तर्कबुद्धि उसे तेनालीराम बनाती है। ऐसी तर्कबुद्धि आम लोगों में प्रायः दुर्लभ है। हमें इस बात का गर्व है कि हमारे दरबार में तेनाली राम जैसा बुद्धिमान सभासद है।

महाराज कृष्णदेव राय ने बोलना जारी रखा- “मैं आज इसके उत्तर से इतना सन्तुष्ट हूं कि इसके लिए ‘स्वर्ण मूषक पुरस्कार’ की घोषणा करता हूं। इसी के साथ कृष्णदेव राय ने राज्य के कोषाध्यक्ष को आदेश दिया कि तेनालीराम को पुरस्कृत करने के लिए पांच तोले सोने का चूहा बनवाकर उन्हें जल्द से जल्द सौंपे!”

महाराज के इस आदेश का तुरंत पालन हुआ। दरबार ने खुद अपने हाथों से तेनालीराम को सोने का चूहा पुरस्कार के रूप में दिया, जिसे तेनालीराम ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। महाराज ने तेनालीराम को गले लगाते हुए कहा- वाह तुम्हारा भी जवाब नहीं। वहीं तेनालीराम आस-पास खड़े दरबारियों को देखकर मुस्कुरा रहे थे, क्योंकि ये उनके आलचकों को करारा जवाब था।

निष्कर्ष

तेनालीराम की इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि किसी भी वस्तु, चाहे वो पुरानी क्यों ना हो, उसके मूल्य को समझना चाहिए। हमें यह सोचना चाहिए कि उसे किस तरह उसे अपने काम में लाया जा सकता है।

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