Tenaliram Ki Kahaniyan: तेनाली रमन (Tenaliram) अक्सर अपनी चतुराई (cleverness) के बल पर लोगों की समस्याओं (people’s problems) का हल निकाला करते थे। परंतु वे अक्सर महाराज (my lord) के साथ बहस में पड़ जाते और उन्हें महाराज (my lord) के गुस्से का सामना करना पड़ता। एक दिन ऐसा ही था, किसी बात पर महाराज (my lord) से तेनाली रमन (Tenaliram) की करारी बहस हुई।
कृष्णदेव राय बोले, “तेनाली! तुम मेरे राज्य से हमेशा के लिए चले जाओ।” तेनाली ने कुछ नहीं कहा और दरबार से चुपचाप निकल आये। यह देख कर उन दरबारियों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जो तेनाली रमन से मन ही मन जलते थे। उनके कारण ही तो अन्य दरबारियों की पूछ कम हो गई थी। महाराज के दरबार – ‘भुवन विजयम’ में सब कुछ पहले की तरह चलता रहा पर अब न तो वहां तेनाली के ठहाके गूंजते थे और न ही उनकी समझदारी के नमूने देखने को मिलते थे।
तेनालीराम की कहानियां (Tenaliram Ki Kahaniyan)
महाराज ने तय किया कि वे इस नीरसता को दूर करने के लिए अपने घोड़े पर सवार हो कर सैर के लिए जाएंगे। महाराज का काफिला तैयार हुआ और वे लोग सैर के लिए चल दिए। लंबी दूरी तय करने के बाद वे लोग एक ऐसे स्थान पर पहुंचे, जहां नारियल के पेड़ लगे हुए थे। सभी आराम करने के लिए वहीं ठहर गए। महाराज के लिए ताजे फल और नारियल पानी का प्रबंध किया गया।
सभी आपस में बातें करते हुए, मन बहलाने लगे परंतु महाराज का मन उदास था उनका मन किसी भी कार्य में नहीं लग रहा था। उन्हें अपने प्रिय तेनाली की याद सता रही थी। वे उस दिन को कोस रहे थे जब उन्हें अपने तेनाली पर गुस्सा आया और उन्होंने उसे राज्य से बाहर जाने को कह दिया। ये अच्छी तरह जानते थे कि तेनाली भी उनसे दूर नहीं रह सकते थे परंतु इस बार जाने क्यों तेनाली भी वापिस नहीं आ रहे थे।
अचानक महाराज ने देखा कि एक व्यक्ति नारियल के पेड़ पर चढ़ रहा था। उन्होंने ध्यान से देखा। वह व्यक्ति तो तेनाली रमन जैसा दिख रहा था वह वहां क्या कर रहा था। उसे तो दरबार से निकाल दिया गया था, इस पेड़ पर उसका क्या काम? महाराज ने अपने नौकरों को आदेश दिया कि उस व्यक्ति को वहां से उतार कर मेरे सामने लाया जाए। जल्दी ही तेनाली को महाराज के सामने पेश किया गया।
तेनाली महाराज को प्रणाम कर कर खड़े हो गए। “मैंने तो तुम्हें अपने राज्य से बाहर जाने को कहा था। तुम यहां पेड़ों पर चढ़ कर क्या कर रहे हो और तुमने मेरा हुक्म भी नहीं माना। तुम जानते हो कि मैं तुम्हें इसके लिए सजा दे सकता हूँ।” महाराज ने कहा परंतु मन ही मन वे तेनाली को सामने पा कर प्रसन्न हो गए। “जी महाराज, में आपके राज्य से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा हूं।” तेनाली बोले।
“पेड़ों पर चढ़ कर ।” अब महाराज की जिज्ञासा बढ़ रही थी। “जी महाराज, मैंने पुरे देश का दौरा किया। मैं जहां भी गया, वहां ज कर पता चला कि वह आपके ही महान साम्राज्य का हिस्सा था। नदियाँ पहाड़ व गुफाएं तक आपकी हैं। महाराज, मुझे लगा कि मुझे स्वर्ग में ही कोई ऐसी जगह मिल सकती है, जिसके मालिक आप न हों। मैं पेड़ों पर चढ़ते हुए, स्वर्ग के निकट जाने की कोशिश कर रहा हूं।” तेनाली बोले ।
Tenaliram Ki Kahaniyan: तेनालीराम और ‘परेशानियों की पोटली’
महाराज खिलखिला कर हंसने लगे। “तेनाली रमन ! तुम बहुत शरारती हो। तुम्हें तो सचमुच बहुत दूर भेज देना चाहिए पर तुम्हारे बिना मेरा दरबार सुना है। अब तुम स्वर्ग की राह तलाशना बंद करो और मेरे साथ वापिस चलो।” महाराज ने कहा। ” जी महाराज! जैसी आपकी आज्ञा ।” तेनाली रमन ने कहा। तेनाली रमन महाराज के साथ खुशी-खुशी राज्य वापिस लौट गए। यह देख कर दूसरे दरबारियों के कलेजे पर सांप लोट गया, जिन्होंने यह मान लिया था कि उन्हें तेनाली रमन से छुटकारा मिल गया है।
क्या सीख मिली (Moral of The story)
हमें आलस्य को त्यागकर मेहनत करना चाहिए। मेहनत ही इंसान की असली दौलत है।